Skip to main content

Posts

Showing posts with the label राजस्थान के लोक नृत्य

राजस्थान की फड़ कला तथा भोपों का संक्षिप्त परिचय

फड़ लंबे कपड़े पर बनाई गई कलाकृति होती है जिसमें किसी लोकदेवता (विशेष रूप से पाबू जी या देवनारायण) की कथा का चित्रण किया जाता है। फड़ को लकड़ी पर लपेट कर रखा जाता है। इसे धीरे धीरे खोल कर भोपा तथा भोपी द्वारा लोक देवता की कथा को गीत व संगीत के साथ सुनाया जाता है। राजस्थान में कुछ जगहों पर जाति विशेष के भोपे पेशेवर पुजारी होते हैं। उनका मुख्य कार्य किसी मन्दिर में देवता की पूजा करना तथा देवता के आगे नाचना-गाना होता है। पाबू जी तथा देवनारायण के भोपे अपने संरक्षकों (धाताओं) के घर पर जाकर अपना पेशेवर गाना व नृत्य के साथ फड़ के आधार पर लोक देवता की कथा कहते हैं। राजस्थान में पाबूजी तथा देव नारायण के भक्त लाखों की संख्या में हैं। इन लोक देवताओं को कुटुम्ब के देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी वीरता के गीत चारण और भाटों द्वारा गाए जाते हैं। भोपों ने पाबूजी और देवनारायण जी की वीरता के सम्बन्ध में सैंकड़ों लोकगीत रचें हैं और इनकी गीतात्मक शौर्यगाथा को इनके द्वारा फड़ का प्रदर्शन करके आकर्षक और रोचक ढंग से किया जाता है। पाबूजी के भोपों ने पाबूजी की फड़ के गीत को अभिनय के साथ गाने की एक विशेष शै

राजस्थान के लोकनृत्य - 2

1. कच्छी घोड़ी नृत्य- कच्छी घोड़ी नृत्य में ढाल और लम्बी तलवारों से लैस नर्तकों का ऊपरी भाग दूल्हे की पारम्परिक वेशभूषा में रहता है और निचले भाग में बाँस के ढाँचे पर कागज़ की लुगदी या काठ से बनी घोड़ी का ढाँचा होता है। यह ऐसा आभास देता है जैसे नर्तक घोड़े पर बैठा है। नर्तक, शादियों और उत्सवों पर नाचता है। इस नृत्य में एक या दो महिलाएँ भी इस घुड़सवार के साथ नृत्य करती है। कभी-कभी दो नर्तक बर्छेबाज़ी के मुक़ाबले का प्रदर्शन भी करते हैं। इस नृत्य में चार-चार लोगों की दो पक्तिंयाँ बनती हैं। जिसमें पक्तिंयों के बनते और बिगड़ते समय फूल की पंखुड़ियों के खिलने का आभास होता हैं। 2. पनिहारी नृत्य-  पनिहारी का अर्थ होता है पानी भरने जाने वाली। पनिहारी नृत्य घूमर नृत्य के सदृश्य होता है। इसमें महिलाएँ सिर पर मिट्टी के घड़े रखकर हाथों एवं पैरों के संचालन के साथ नृत्य करती है। यह एक समूह नृत्य है और अक्सर उत्सव या त्यौहार पर किया जाता है। राजस्थान के नृत्यों के बारें में जानने के लिए यह भी देखिए- राजस्थान के लोकनृत्य - 1   3. बमरसिया या बम नृत्य- यह अलवर और भरतपुर क्षेत्र

गवरी - राजस्थान का एक लोक नृत्यानुष्ठान -- Gavri - a Folk Dance Ritual of Rajasthan

मेरु नाट्यम है गवरी- राजस्थान की समृद्ध लोक परम्परा में कई लोक नृत्य एवं लोक नाट्य प्रचलित है। इन सबसे अनूठा है ' गवरी ' नामक ' लोक नृत्य-नाटिका ' । 'गवरी ' उन भीलों का एक मेरु नाट्यम हैं। यह एक नृत्य नाटक है, जो कि अनुकरण (नक़ल mime) और वार्तालाप को जोड़ता है, और ''गवरी नृत्य या राई नृत्य'' के नाम से जाना जाता है। गवरी में अभिनीत किये जाने वाले दृश्यों को 'खेल', ' भाव' या सांग कहा जाता है। यह भील जनजाति का एक ऐसा नाट्य-नृत्यानुष्ठान है, जो सैकड़ों बरसों से प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के एक दिन पश्चात प्रारंभ हो कर सवा माह तक आयोजित होता है। इसका आयोजन मुख्यत: उदयपुर और राजसमंद जिले में होता है। इसका कारण यह है कि इस खेल का उद्भव स्थल उदयपुर माना जाता है तथा आदिवासी भील जनजाति इस जिले में बहुतायत से पाई जाती है। गवरी का कथानक भगवान शिवजी के इर्द-गिर्द होता है, जो इसके केंद्रीय चरित्र है, तथा इस नृत्य-नाटिका में उनका चरित्र बहुत ही आश्चर्यजनक रूप में चित्रित होता है। गवरी में जो गाथाएं सुनने को मिलती हैं ,