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Kshetrapal's unique temple where women are Priest- क्षेत्रपाल का अनूठा मंदिर जहां महिलाएं हैं पुजारी-

जैसलमेर जिले में स्थानीय लोकदेवता (खेतपाल जी) क्षेत्रपाल जी का अनूठा मंदिर जिला मुख्यालय से छ किलोमीटर दूर स्थित हैं, जहां स्थानीय निवासी शादी के बाद विवाह का सूत्रबंधन (स्थानीय भाषा में कांकण डोरड़ा) खोलने आते हैं । इस मंदिर में अब तक लाखों की संख्या में दूल्हा-दुल्हन धोक देकर कांकण डोरा खोल चुके हैं । इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यहाँ परम्परागत रूप से पूजा माली जाति की महिलाएं करती हैं । महिला दूल्हा-दुल्हन से विधिवत पूजा-पाठ पुजारी कराती हैं तथा पूजा-पाठ के बाद क्षेत्रपाल को साक्षी मान कर नवदम्पति के विवाह सूत्र-बंधन खोले जाते हैं , ताकि क्षेत्रपाल की मेहर ताउम्र दूल्हा दुल्हन पर बनी रहे । जैसलमेर राज्य की स्थापना के यह परंपरा शुरू हुई थी तथा सैंकड़ो वर्षों से चल रही परम्परा आज भी निर्विवाद रूप से चल रही हैं । इस मंदिर में जैसलमेर के हर जाति व धर्म के स्थानीय निवासी माथा टेकते हैं । क्षेत्रपाल को श्रृद्धालु इच्छानुसार सवा किलो से ले कर सवा मन तक का चूरमा का भोग देते हैं । जैसलमेर में प्रत्येक जाति व धर्म में होने वाली शादी के बाद तीसरे या चौथे दि

Rajasthan's Temple sculpture : More than 100 important useful facts --

राजस्थान का मंदिर-शिल्प : उपयोगी 100 से अधिक महत्वपूर्ण तथ्य-

1.   राजस्थान में जो मंदिर मिलते हैं , उनमें सामान्यतः एक अलंकृत प्रवेश - द्वार होता है , उसे ‘ तोरण - द्वार ’ कहते हैं। 2.    सभा - मण्डप - तोरण द्वार में प्रवेश करते ही उपमण्डप आता है। तत्पश्चात् विशाल आंगन आता है , जिसे ‘ सभा - मण्डप ’ कहते हैं। 3.     मूल - नायक - मंदिर में प्रमुख प्रतिमा जिस देवता की होती है उसे ‘ मूल - नायक ’ कहते हैं। 4.    गर्भ - गृह - सभा मण्डप के आगे मूल मंदिर का प्रवेश द्वार आता है। मूल मन्दिर को ‘ गर्भ - गृह ’ कहा जाता है , जिसमें ‘ मूल - नायक ’ की प्रतिमा होती है। 5.     गर्भगृह के ऊपर अलंकृत अथवा स्वर्णमण्डित शिखर होता है। 6.   प्रदक्षिणा पथ - गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा लगाने के लिए जो गलियारा होता है , उसे ‘ पद - प्रदक्षिणा पथ ’ कहा जाता है। 7.    पंचायतन मंदिर- मूल नायक का मुख्य मंदिर चार अन्य लघु मंदिरों से परिवृत (घिरा) हो तो उसे “पंचायतन मंदिर” कहा जाता है। 8.    तेरहवीं सदी तक राजपूतों के बल एवं शौर्य की भावना मन्दिर स्थापत्य में भी