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Cultural achievements of Maharana Kumbha- महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ -

कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ - मेवाड़ के राणाओं की विरासत में महाराणा कुम्भा एक महान योद्धा, कुशल प्रशासक, कवि, संगीतकार जैसी बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी होने साथ-साथ विभिन्न कलाओं के कलाकारों तथा साहित्यसर्जकों के प्रश्रयदाता भी थे। इतिहासकार कुम्भा की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि महाराणा कुंभा के व्यक्तित्व में कटार, कलम और कला की त्रिवेणी का अद्भुत समन्वय था। लगातार युद्धों में लगे रहने के बावजूद 35 वर्ष लम्बा कुम्भा का काल सांस्कृतिक दृष्टि से मेवाड़ के इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है। निःसंदेह हम कह सकते हैं कि इतिहास में कुंभा का जो स्थान एक महान विजेता के रूप में है, उससे भी बड़ा व महत्त्वपूर्ण स्थान उसका स्थापत्य और विविध विद्याओं की उन्नति के पुरोधा के रूप में है। कुम्भा काल की वास्तुकला - कुंभा वास्तु व स्थापत्य कला का मर्मज्ञ था। कुम्भाकालीन सांस्कृतिक क्षेत्र में वास्तु-कला का महत्त्व सर्वाधिक है। इस काल में मेवाड़ ने वास्तुकला के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगति की थी। उसकी स्थापत्य कला को हम निम्नांकित तीन भागों में बांट सकते हैं - 1. मंदिर                          

राजस्थान की जयपुरी रजाइयां

राजस्थान के जयपुर की रजाईयां अपनी विशेषताओं के कारण उपभोक्ताओं द्वारा काफी पसंद की जाती है और इनके हल्के वजन, कोमलता एवं गर्माहट की खासियत के लिये इनकी भरपूर सराहना की जाती है। राजस्थान की इन जयपुरी रजाईयों की व्यापक एवं भरपूर रेंज उपलब्ध होती हैं। जयपुरी रजाईयों बुनकरों का वंशानुगत व्यवसाय है और इसे वे पिछली कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं। जयपुर के जुलाहा सर्दी के मौसम में घरेलू उपयोग में आने वाले सभी प्रकार के उत्पादों को बनाते हैं, लेकिन रजाई बनाने में उन्हें विशेष योग्यता प्राप्त है। सर्दियों में दैनिक उपयोग के लिये रजाई की उच्च गुणवत्ता का उत्पादन उनकी विशेष पहचान है। रजाईयों को बनाने के लिए बेहतरीन सामग्री का उपयोग किया जाता है वजन में हल्की होने के बावजूद ये बहुत ही गर्म और आरामदायक होती है। इनको बनाने में उच्च श्रेणी की शुद्ध एवं गुणवत्तापूर्ण कपास का प्रयोग किया जाता है। यहाँ सादी, सारंग, फेंसी कपास, कढ़ाई, पिपली काम आदि की कई वर्षों से बनाई जा रही रजाइयां 1000 से लेकर 18000-20000 रुपये तक की रेंज में उपलब्ध होती हैं। विशेष आदेश पर उच्चकोटि की विशेष कपास से बनाई गई रजाई इतन

‘‘थेवा कला’’ ने किया है राजस्थान का नाम देश और विदेश में रोशन-

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित किये गए 34 वें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के राजस्थान मण्डप में प्रदेश के विभिन्न सिद्धहस्त शिल्पियों के साथ ही ‘ थेवा-कला ’ से बने आभूषण इन दिनों व्यापार मेला में दर्शकों विशेषकर महिलाओं के लिये विशेष आकर्षण का केन्द्र बने। राजस्थान मण्डप में प्रदेश के एक से बढ़कर एक हस्तशिल्पी अपनी कला से दर्शकों को प्रभावित किया , लेकिन थेवा कला से बनाये गये आभूषणों की अपनी अलग ही पहचान है। शीशे पर सोने की बारीक मीनाकारी की बेहतरीन ‘ थेवा-कला ’ विभिन्न रंगों के शीशों ( काँच) को चांदी के महीन तारों से बनी फ्रेम में डालकर उस पर सोने की बारीक कलाकृतियां उकेरने की अनूठी कला है , जिन्हें कुशल और दक्ष हाथ छोटे-छोटे औजारों की मदद से बनाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली इस कला को राजसोनी परिवार के पुरूष सीखते हैं और वंश परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। इसी ‘ थेवा-कला ’ से बने आभूषणों का प्रदर्शन व्यापार मेला में ’’ ज्वैल एस इंटरनेशनल ‘‘ द्वारा किया गया , जिसने मण्डप में आने वाले दर्शकों को अपनी ओर लगातार खींचा। थेवा कला की शुरूआत लगभग 300 वर्ष पूर्व राजस

BARMER DISTRICT OF RAJASTHAN - राजस्थान का बाड़मेर जिला

बाड़मेर जिला दक्षिण पश्चिमी राजस्थान के थार मरूस्थल के मध्य स्थित है। 12वीं शताब्दी में परमार शासक बाहड़राव द्वारा प्राचीन बाड़मेर को बसाया गया था , जिसकी स्थिति किराड़ू के पहाडों के पास स्थित 'जूना बाड़मेर' थी। विक्रम संवत् 1608 में जोधपुर के शासक रावल मालदेव ने जूना बाड़मेर पर अधिकार कर लिया व वहां का सरदार भीमा जैसलमेर भाग गया। भीमा ने जैसलमेर के भाटी राजपूतों के साथ सैन्य बल मजबूत कर मालदेव के साथ युद्ध किया एवं पुनः पराजित होने पर बापड़ाउ के ठिकाने पर 1642 में सुरम्य पहाड़ियो की तलहटी में वर्तमान बाड़मेर नगर बसाया। बाड़मेर प्रारम्भ से ही भारत एवं मध्य एशिया के मध्य ऊॅंटो के कारवां से होने वाले व्यापारी मार्ग पर होने से बाड़मेर आर्थिक रूप से समृद्ध रहार । सन् 1899 में बाड़मेर जोधपु रेल्वे सम्पर्क से जुड़ा , जिससे रेल्वे ने बाड़मेर को भारत के अन्य शहरों से जोड़कर विकास के नये आयाम प्रदान किए। भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने से सन् 1965 एवं 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बाड़मेर का नाम भारत के मानचित्र पर विशेष रूप से उभरा। वर्तमान में बाड़मेर में निकले