Skip to main content

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना की मुख्य विशेषताएं -

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना की मुख्य विशेषताएं

राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) देश में पहली बार तैयार की गई इस तरह की राष्‍ट्रीय योजना है।

एनडीएमपी की मुख्‍य विशेषताएं निम्‍नलिखित हैं :

·        एनडीएमपी आपदा जोखिम घटाने के लिए सेंडैई फ्रेमवर्क में तय किए गए लक्ष्‍यों और प्राथमिकताओं के साथ मौटे तौर पर तालमेल करेगा।
·        योजना का विजन भारत को आपदा मुक्‍त बनाना है, आपदा जोखिमों में पर्याप्‍त रूप से कमी लाना है, जान-माल, आजीविका और संपदाओं- आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक और पर्यावरणीय- के नुकसान को कम करना है, इसके लिए प्रशासन के सभी स्तरों और साथ ही समुदायों की आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाया जाएगा।
·        प्रत्‍येक खतरे के लिए, सेंडैई फ्रेमवर्क में घोषित चार प्राथमिकताओं को आपदा जोखिम में कमी करने के फ्रेमवर्क में शामिल किया गया है। इसके लिए पांच कार्यक्षेत्र निम्‍न हैं :

  •   जोखिम को समझना

  •   एजेंसियों के बीच सहयोग

  •   डीआरआर में सहयोग संरचनात्‍मक उपाय

  •   डीआरआर में सहयोग गैर-संरचनात्‍मक उपाय

  •   क्षमता विकास

·    योजना के कार्यकारी हिस्‍से की पहचान 18 बड़े कार्यों के रूप में की गई है, जिनमें निम्‍नलिखित शामिल हैं :

o       पूर्व चेतावनी, मानचित्र, उपग्रह इनपुट, सूचना प्रसार

o       पशुओं और लोगों को हटाना

o       पशुओं और लोगों को ढूंढना और बचाना

o       स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं

o       पेयजल/निर्जलीकरण पंप/स्वच्छता सुविधाएं/सार्वजनिक स्वास्थ्य

o       खाद्य और आवश्यक आपूर्ति

o       संचार

o       आवास और झोपड़ियों

o       बिजली

o       ईंधन

o       परिवहन

o       राहत रसद और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन

o       पशु के शवों का निपटान

o       प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं के लिए चारा

o       पुनर्वास एवं पशुधन और अन्य जानवरों के लिए पशु चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करना

o       डेटा संग्रह और प्रबंधन

o       राहत रोजगार

o       मीडिया सम्‍पर्क


योजना में आपदा जोखिम की बेहतर शासन प्रणाली के लिए एक अध्याय भी शामिल किया गया है। केंद्र और राज्‍यों की संबंधित भूमिकाओं वाली विशेष एजेंसियों की सामान्यीकृत जिम्मेदारियां इस खंड में दी गई हैं। छह क्षेत्रों में केन्द्र और राज्य सरकारें आपदा जोखिम शासन प्रणाली को मजबूत करने के लिए कार्रवाईयां करेंगी :

o       मुख्यधारा और एकीकृत डीआरआर और संस्थागत सुदृढ़ीकरण

o       विकास क्षमता

o       भागीदारीपूर्ण नजरिये को बढ़ावा देना

o       चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ काम करना

o       शिकायत निवारण प्रणाली

o       आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए गुणवत्ता वाले मानकों, प्रमाणीकरण, आदि को बढ़ावा देना


राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) आपदा प्रबंधन चक्र के सभी चरणों के लिए सरकारी एजेंसियों को रूपरेखा और दिशा प्रदान करता है।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली