Skip to main content

राजस्थान की पहचान - कोटा डोरिया या मसूरिया साड़ी


कोटा ने बीते दशक में देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान कायम की है। यहां के कुछ विशेष उत्पादों ने देश-दुनिया में धूम मचा दी। इन्हीं में से एक कोटा डोरिया साड़ी ने तो कोटा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है। कोटा डोरिया ने कोटा की ख्याति में चार चांद लगाए हैं। कोटा जिले के कैथून कस्बे के बुनकरों के इस हुनर के परदेशी भी कायल हैं। महिलाएं कोटा डोरिया की साडियों को बेहद पसंद करती हैं। कैथून की साडियों व अन्य उत्पादों की देश के कोने-कोने में अच्छी मांग है। कैथून में करीब चार हजार लूम हैं। उच्च गुणवत्ता की कोटा डोरिया मार्का की साड़ियों का निर्माण करना यहाँ के बुनकरों का पुस्तैनी काम है ये कई पीढ़ियों से अपने हथकरघों (लूम्स) पर बुनाई का काम करते आ रहे है। हथकरधा पर ताना-बाना से निर्मित की जाने वाली इन साड़ियों को तैयार करने में बुनकर विशेष रूप से सिल्वर गोल्डन जरी, रेशम, सूत, कॉटन के धागों का मिश्रित रूप से उपयोग करते है। ये उच्च गुणवत्ता के धागे मुख्यतः बेंगलूरू (कर्नाटक) सूरत (गुजरात), कोयम्बटूर (तमिलनाडु) से मंगवाये जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोटा डोरिया के कपडे व अन्य उत्पाद लोगों द्वारा पसंद किये जाते हैं। कैथून क्लस्टर में बनने वाले कोटा डोरिया में सिल्वर, गोल्डन, जरी, रेशम, सूत, कार्टन के धागों की की कुछ हजार से लेकर 80-90 हजार तक की साड़ियों का निर्माण यहाँ किया जाता है। लोग कोटा डोरिया की साड़ियां और दुपट्टे के अलावा कपड़ा खरीदने में रुचि दिखाते हैंताकि उनसे मनपसंद डिजाईन के वस्त्र सिलवाए जा सके।
कोटा जिले के कैथून में बनने वाले 80 फीसदी कोटा डोरिया की डिमांड दक्षिण भारत विशेषतः हैदराबाद, बैंगलोर व चेन्नई में होती है। दक्षिण भारतीय महिलाओं का कोटा डोरिया के प्रति रुझान से ही यहां के कारीगरों की रोजी रोटी चल रही है। कोटा डोरिया साडि़यां खास धागे व हाथ से बनी होने के कारण पहनने में बहुत आरामदायक होती है। समुद्र तटीय इलाकों के उमस भरे मौसम में कोटा डोरिया साड़ी बहुत सुविधाजनक रहती है। कैथून में बनने वाली कोटा डोरिया साड़ी जिनमें गोल्ड व सिल्वर का वर्क होता है, उन्हें इस्तेमाल के बाद बेचने पर खरीद मूल्य की 30 प्रतिशत तक री-सेल वैल्यू मिल जाती है। इतनी री-सेल वैल्यू किसी भी दूसरी साड़ी की नहीं होती। कोटा डोरिया से तैयार विशेष प्रकार के हजारों की संख्या में साड़ियाँ, बैग व अन्य उत्पाद विदेशों में निर्यात किए जाते हैं।
कोटा डोरिया की नकली साड़ियों का उत्पादन आज सबसे बड़ी समस्या एवं चुनौती बन कर उभर रही है। वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी नकली साड़ियां भी बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध हो रही है। जिससे यहाँ के बुनकरों के पुस्तैनी व्यवसाय को थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यह व्यवसाय कोटा के मांगरोल एवं कैथुन के आसपास के गांवों और कस्बों में विशेष रूप से बुनकर परिवारों की आजीविका का प्रमुख साधन है। अकेले कैथून में लगभग चार हजार लूम्स कार्यरत है।
इन साडि़यों के बनने के पीछे भी एक दिलचस्‍प कहानी है, दरअसल इन साडि़यों को मैसूर में बुना गया था लेकिन इनके बुनकर कोटा से लाए गए थे जिन्‍हे एक मुगल आर्मी के जनरल राव किशोर सिंह अपने साथ लेकर आए थे। अत: मसूरिया नाम से जानी जाने वाली यह कोटा में बनने के कारण साडि़यां कोटा साड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। वैसे देश के कई हिस्‍सों में इन्‍हे कोटा डोरिया के नाम से जाना जाता है। इन्‍हे 'कॉटन और सिल्‍क का छ: गज का जादू' भी कहा जाता है। कोटा की इन साडि़यों को कोटा ड़ोरिया नाम से पुकारे जाने का भी एक विशेष कारण है क्योंकि  एक तो ये कोटा में बनती है तथा डोरिया का अर्थ होता है धागा अर्थात कोटा में धागे से निर्मित की जाने वाली साड़ियाँ- "कोटा-डोरिया"।
नकली कोटा डोरिया पर अंकुश लगाने के लिए 1999-2000 में केन्द्रीय कानून भौगोलिक चिह्नीकरण अधिनियम के अन्तर्गत कोटा डोरिया का पेंटेट करवाया गया। इस कानून के तहत कोटा डोरिया के नाम से नकली उत्पाद बेचना अपराध है।
कोटा डोरिया के नकली उत्पादों से बचने के लिए रूड़ा संस्था (Rural Non Farm Development Agency (RUDA) , Jaipur) काफी प्रयास कर रही है एवं बुनकरों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग दिया जा रहा है। नकली उत्पादों से बचने के लिए बुनाई के दौरान कोटा डोरिया मार्का को बुनाई में ही बना दिया जाता है, जिससे इन वस्त्रों एवं साड़ियों की वास्तविकता को पहचाना जा सकता है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कैथून के बुनकरों के कल्याण के लिए कई योजनाएं भी संचालित कीं।

Comments

Popular posts from this blog

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का जनगणना- 2011 के Provisional data अनुसार लिंगानुपात -

वर्ष 2011 की जनगणना के के Provisional data के अनुसार राजस्थान का कुल लिंगानुपात 926 स्त्रियाँ प्रति 1000 पुरुष है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 0-6 वर्ष की लिंगानुपात 888 स्त्रियाँ प्रति 1000 पुरुष है।   इसमें ग्रामीण क्षेत्र का लिंगानुपात (0-6 वर्ष ) 892 स्त्री प्रति 1000 पुरुष है तथा ग्रामीण क्षेत्र का लिंगानुपात (0-6 वर्ष ) 874 स्त्रियाँ प्रति 1000 पुरुष है। राजस्थान के सर्वोच्च लिंगानुपात वाले 5 जिले- 1 Dungarpur 990 2 Rajsamand 988 3 Pali 987 4 Pratapgarh* 982 5 Banswara 979 राजस्थान के न्यूनतम लिंगानुपात वाले 5 जिले- 1 Ganganagar 887 2 Bharatpur 877 3 Karauli 858 4 Jaisalmer 849 5 Dhaulpur 845 राजस्थान के सर्वोच्च लिंगानुपात (0-6 वर्ष ) वाले 5 जिले- 1. Banswara        934 2. Pratapgarh          933 3. Bhilwara            928 4. Udaipur             924 5. Dungarpur          922   राजस्