कोटा ने बीते दशक
में देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान कायम की है। यहां के कुछ विशेष उत्पादों
ने देश-दुनिया में धूम मचा दी। इन्हीं में से एक कोटा डोरिया
साड़ी ने तो कोटा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है। कोटा डोरिया ने
कोटा की ख्याति में चार चांद लगाए हैं। कोटा जिले के कैथून कस्बे के बुनकरों के इस हुनर
के परदेशी भी कायल हैं। महिलाएं कोटा डोरिया की साडियों को बेहद पसंद करती
हैं। कैथून की साडियों व अन्य उत्पादों की देश के कोने-कोने में
अच्छी मांग है। कैथून में करीब चार हजार लूम हैं। उच्च गुणवत्ता की कोटा डोरिया मार्का
की साड़ियों का निर्माण करना यहाँ के बुनकरों का पुस्तैनी काम है। ये कई पीढ़ियों से अपने हथकरघों (लूम्स)
पर बुनाई का काम करते आ रहे है। हथकरधा पर ताना-बाना से निर्मित की जाने वाली इन
साड़ियों को तैयार करने में बुनकर विशेष रूप से सिल्वर गोल्डन जरी, रेशम, सूत, कॉटन के धागों का मिश्रित रूप से उपयोग
करते है। ये उच्च गुणवत्ता के धागे मुख्यतः बेंगलूरू (कर्नाटक) सूरत (गुजरात), कोयम्बटूर (तमिलनाडु) से मंगवाये जाते
हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोटा डोरिया के कपडे व अन्य उत्पाद लोगों द्वारा पसंद
किये जाते हैं। कैथून क्लस्टर में बनने वाले कोटा डोरिया में सिल्वर, गोल्डन, जरी, रेशम, सूत, कार्टन के धागों की की कुछ हजार से लेकर
80-90 हजार तक की साड़ियों का निर्माण यहाँ
किया जाता है। लोग कोटा डोरिया की साड़ियां और दुपट्टे के अलावा कपड़ा खरीदने में रुचि दिखाते हैंताकि
उनसे मनपसंद डिजाईन के वस्त्र सिलवाए जा सके।
कोटा जिले के कैथून
में बनने वाले 80 फीसदी कोटा डोरिया
की डिमांड
दक्षिण भारत विशेषतः हैदराबाद, बैंगलोर व चेन्नई में होती है। दक्षिण
भारतीय महिलाओं का कोटा डोरिया के प्रति रुझान से ही यहां के कारीगरों की रोजी रोटी
चल रही है। कोटा डोरिया साडि़यां खास धागे व हाथ से बनी होने के कारण पहनने में बहुत आरामदायक
होती है। समुद्र तटीय इलाकों के उमस भरे मौसम में कोटा डोरिया साड़ी बहुत
सुविधाजनक रहती है। कैथून में बनने वाली कोटा डोरिया साड़ी जिनमें गोल्ड व सिल्वर का वर्क होता है, उन्हें इस्तेमाल के
बाद बेचने पर खरीद मूल्य की 30 प्रतिशत तक री-सेल वैल्यू मिल जाती है। इतनी
री-सेल वैल्यू किसी भी दूसरी साड़ी की नहीं होती। कोटा डोरिया से तैयार विशेष
प्रकार के हजारों की संख्या में साड़ियाँ, बैग व अन्य उत्पाद विदेशों में निर्यात
किए जाते हैं।
कोटा डोरिया की नकली साड़ियों का उत्पादन आज सबसे बड़ी समस्या एवं चुनौती
बन कर उभर रही है। वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी नकली साड़ियां भी
बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध हो रही है। जिससे यहाँ के बुनकरों के पुस्तैनी
व्यवसाय को थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यह व्यवसाय कोटा के मांगरोल
एवं कैथुन के आसपास के गांवों और कस्बों में विशेष रूप से बुनकर परिवारों की
आजीविका का प्रमुख साधन है। अकेले कैथून में लगभग चार हजार लूम्स कार्यरत है।
इन साडि़यों के बनने के पीछे भी
एक दिलचस्प कहानी है, दरअसल इन साडि़यों को मैसूर में बुना गया था लेकिन
इनके बुनकर कोटा से लाए गए थे जिन्हे एक मुगल आर्मी के जनरल
राव किशोर सिंह अपने साथ लेकर आए थे। अत: मसूरिया नाम
से जानी जाने वाली यह कोटा में बनने के कारण साडि़यां कोटा
साड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। वैसे देश के कई
हिस्सों में इन्हे कोटा
डोरिया के नाम से जाना जाता है। इन्हे 'कॉटन और सिल्क
का छ: गज का जादू' भी कहा जाता है। कोटा की इन साडि़यों को कोटा ड़ोरिया नाम से पुकारे जाने
का भी एक विशेष कारण है क्योंकि एक तो ये
कोटा में बनती है तथा डोरिया का अर्थ होता है धागा अर्थात कोटा में धागे से
निर्मित की जाने वाली साड़ियाँ- "कोटा-डोरिया"।
नकली कोटा डोरिया
पर अंकुश लगाने के लिए 1999-2000 में केन्द्रीय कानून भौगोलिक
चिह्नीकरण अधिनियम के अन्तर्गत कोटा डोरिया का पेंटेट करवाया गया। इस कानून के तहत
कोटा डोरिया के नाम से नकली उत्पाद बेचना अपराध है।
कोटा डोरिया के
नकली उत्पादों से बचने के लिए रूड़ा संस्था (Rural Non Farm Development
Agency (RUDA) , Jaipur) काफी प्रयास कर
रही है एवं बुनकरों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग दिया जा रहा है। नकली उत्पादों
से बचने के लिए बुनाई के दौरान कोटा डोरिया मार्का को बुनाई में ही बना दिया जाता
है, जिससे इन वस्त्रों
एवं साड़ियों की वास्तविकता को पहचाना जा सकता है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कैथून के
बुनकरों के कल्याण के लिए कई योजनाएं भी संचालित कीं।
Comments
Post a Comment
Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार