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VETERAN WRITER AND POLITICIAN LAKSHMI KUMARI CHUNDAWAT PASSED AWAY
<राजस्‍थानी की वयोवृद्ध लेखिका 'राजस्थान रत्न' रानी लक्ष्‍मीकुमारी चूंडावत का स्‍वर्गवास


CHUNDAWAT, SHRIMATI  LAKSHMI KUMARI : 

Political Party- Congress (Rajasthan); daughter of Rawat Bijay Singh; birth date. June 24, 1916; married. Rawat Tej Singh; 2 s. and 4 d.; Member, Raiasthan Legislative Assembly, 1962—71, Member on the Panel of Chairmen, Rajasthan Legislative Assembly; Member, Rajya Sabha, 10-4-1972 to 9-4-1978: President, Raiasthan P.C.C.; Author of a number of books in Hindi and Rajasthani.

राजस्‍थानी भाषा की वयोवृद्ध लेखिका रानी लक्ष्‍मीकुमारी चूंडावत का 24 मई 2014 को हमारे बीच से विदा हो गई। वे एक महीने बाद 98 वर्ष की अवस्‍था पूर्ण करने वाली थीं उनका जन्‍म 24 जून 1916 को देवगढ़ (मेवाड़) में हुआ था। वो राजस्थान में मेवाड़ राजघराने की एक बड़ी रियासत देवगढ़ के रावत विजयसिंह की पुत्री थीं।  उनका विवाह 1934 में रावतसर के रावत तेज सिंह से हुआ।   

जीवन-पर्यन्‍त अपने रचनात्‍मक लेखन और राजस्‍थानी साहित्‍य-संस्‍कृति में गहरी रुचि के अनुरूप उन्‍होंने कथा साहित्‍य और पारंपरिक वात-साहित्‍य के क्षेत्र में अमूल्‍य योगदान दिया। वे सन् 1962 से 1971 तक राजस्‍थान विधान सभा की तीन सत्रों में सदस्‍य रहीं वे 10-4-1972 से 9-4-1978 तक राज्‍यसभा की सदस्‍य रहीं और 11 वर्ष तक राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी की अध्‍यक्ष भी रहीं। साहित्‍य तथा संस्‍कृति के क्षेत्र में अमूल्‍य योगदान के लिए उन्‍हें राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनेक पुरस्‍कार और सम्‍मान प्राप्‍त हुए। 

राजस्थानी साहित्य  में उनके योगदान के लिए 1984 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। इसी तरह उन्हें साहित्य महमहोपाध्याय, राजस्थान रत्न,  टेसिटरी गोल्ड अवार्ड, महाराना कुम्भा पुरस्कार, सोवियत लैण्ड नेहरू अवार्ड आदि से भी पुरस्कृत किया गया। एक सुप्रसिद्ध लेखिका के रूप में उनकी 50 से अधिक पुस्‍तकें प्रकाशित हैं, जिनमें मांझळ रात, अमोलक वातां, मूमल, कै रे चकवा बात, राजस्‍थानी लोकगाथा, बगड़ावत देवनारायण महागाथा, राजस्थान के रीति-रिवाज, अंतरध्वनि, लेनिन री जीवनी, हिंदुकुश के उस पार विशेष रूप से विख्‍यात रहीं। इसके अलावा उन्‍होंने रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर की कहानियों, रूसी कथाओं और विश्‍व की अनेक प्रसिद्ध कृ‍तियों के अनुवाद भी किये। अपने जीवनकाल में अनेक देशों की यात्राएं की  

लक्ष्मी कुमारी चूंडावत संभवतः पहली ऐसी राजपूत महिला थी, जिन्होंने राजस्थान के सामंती परिवेश में 'विद्रोह' कर घूँघट छोड़ा और राजनीति में क़दम रखा। विधानसभा में चुनकर गईं । राजस्थान प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला, राज्यसभा में भी रहीं। देशविदेश में खूब घूमीं लेकिन साथ ही साथ राजस्थानी कथा साहित्य का लेखन अबाध जारी रखा। आश्चर्य यह भी कि लोक कथाओं का दिलचस्प संसार रचने वाली चूंडावत ने कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं की थी। उनके जीवन पर केंद्रित किताब 'फ़्रॉम पर्दा टू द पीपल' (संपादक - फ़्रांसिस टैफ़्ट) में उनके राजनीतिक जीवन के अनुभवों का सुंदर चित्रण है। उन्होंने साल 1978 के विश्व शांति सम्मेलन, संयुक्त राज्य निशस्त्रीकरण सम्मेलन सहित कई सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

राजस्‍थानी साहित्‍य और संस्‍कृति के उन्‍नयन में उनका योगदान सदा याद किया जाता रहेगा। उनके निधन से निश्‍चय ही राजस्‍थान ने एक अमूल्‍य रत्‍न खो दिया है।  हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

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