Skip to main content

उदयपुर (मेवाड़) में स्वाधीनता आन्दोलन-







1.      बिजोलिया का किसान आन्दोलन –

दिनांक
विवरण
1897
ठिकाना बिजोलिया के किसानों द्वारा वहां के जागीरदार राव कृष्ण सिंह के विरुद्ध लाग-बाग और बैठ-बेगार लेने के खिलाफ एक प्रतिनिधिमंडल मेवाड़ महाराणा के पास भेजा। यह मिशन असफल । प्रतिनिधि मंडल के नेता नानजी तथा ठाकरी पटेल का जागीरदारों द्वारा जागीर से निर्वासन।
1903-1905
बिजोलिया राव द्वारा किसानो पर चंवरी कर आरोपित। किसानों द्वारा विरोध स्वरुप कृषि भूमि पड़त रखी। राव द्वारा चंवरी कर समाप्त किया और लाते-कूंते में रियायत दी।
1906-1913
राव कृष्ण सिंह की मृत्यु पर राव पृथ्वी सिंह द्वारा तलवार बंधाई कर की वसूली। साधू सीताराम दास के नेतृत्व में किसानों का विरोध। कृषि भूमि पड़त रखी। ठिकाने पर मेवाड़ सरकार द्वारा मुन्सरमात ।
1916-1917
विजय सिंह पथिक का बिजोलिया आगमन। साधू सीताराम दास और माणिक्य लाल वर्मा के द्वारा ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड’ की स्थापना। ठिकाने द्वारा प्रथम विश्व युद्ध का चंदा वसूलने का प्रयास। ऊपरमाल पंच बोर्ड का विरोध। साधू सीताराम दास और प्रेमचंद भील कि गिरफ्तारी। लोकमान्य तिलक की सलाह पर महाराणा द्वारा उनकी रिहाई। ठिकाने द्वारा तलवार बंदी और विश्व युद्ध का चंदा वसूली तथा बेगार लेना जारी।
1919
सरकार द्वारा जाँच आयोग की नियुक्ति। आयोग द्वारा लाग-बाग और बेगार समाप्त करने की सिफारिश। सरकार की अकर्मण्यता। महादेव देसाई का बिजोलिया आगमन। गाँधी जी का महाराणा को पत्र। मदन मोहन मालवीय जी की महाराणा से मुलाक़ात किन्तु प्रयास असफल।
1920
बिजोलिया में असहयोग आन्दोलन चलाने के लिए गाँधीजी का आशीर्वाद। किसानों द्वारा लाग-बाग, बेगार और भूमि कर देना बंद किया। ठिकाने कि कचहरियों का बहिष्कार। अजमेर में “राजस्थान सेवा संघ” की स्थापना।
1921
किसानों द्वारा बिना लगन दिए फसलों की कटाई।
1922
भारत सरकार द्वारा बिजोलिया प्रकरण में दखल। ए. जी. जी. हालैण्ड का बिजोलिया आगमन। किसानों एवं हालैण्ड में समझौता। 84 में से 35 लगानें माफ़ कि गई। ठिकाने के अत्याचारी कारिंदे बर्खास्त किये गए। तीन साल के अन्दर भूमि बंदोबस्त का आश्वासन। किसानों कि अभूतपूर्व विजय। ठिकाने द्वारा समझौते के पालन में उदासीनता। बेगूं के किसान आन्दोलन के दौरान विजय सिंह पथिक गिरफ्तार। साधू सीताराम दास का बिजोलिया से प्रस्थान। माणिक्य लाल वर्मा किसानों के एक छत्र नेता बने।
1923-28
ठिकाने में भूमि बंदोबस्त प्रारंभ। लगान की ऊँची दरें मुकर्रर। राज्य के सेटलमेन्ट कमिश्नर ट्रेंच का बिजोलिया आगमन। माणिक्य लाल वर्मा की गिरफ़्तारी। विजय सिंह पथिक की जेल से रिहाई तो की गई किन्तु मेवाड़ से निष्कासन। किसानों द्वारा कृषि भूमि से इस्तीफा। ठिकाने द्वारा भूमि कि नीलामी तथा अन्य लोगों को भूमि का आवंटन। सेठ जमना लाल बजाज के कहने पर हरिभाऊ उपाध्याय की राज्य के सेटलमेन्ट कमिश्नर ट्रेंच से मुलाक़ात। ट्रेंच द्वारा किसानों को भूमि वापसी का आश्वासन। ट्रेंच द्वारा आश्वासन तोड़ा।
1931-1933
किसानों द्वारा माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में इस्तीफाशुदा जमीन पर हल जोतना प्रारंभ। माणिक्य लाल वर्मा और 400 किसान गिरफ्तार। सेठ जमना लाल बजाज की महाराणा तथा उनके प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद से मुलाक़ात। सरकार द्वारा भूमि वापस देने का आश्वासन। माणिक्य लाल वर्मा तथा किसान रिहा। सरकार ने फिर वादाखिलाफी की। वर्मा जी का मेवाड़ से निर्वासन।
1941
मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचार्य की मेवाड़ प्रजामंडल के नेताओं से बातचीत। राजस्व मंत्री डॉ. मोहन सिंह मेहता का बिजोलिया प्रस्थान। किसानों को भूमि सुपुर्द। आन्दोलन समाप्त।

2.      बेगूं का किसान आन्दोलन –

दिनांक
विवरण
1921
मेनाल नामक स्थान पर बेगूं जागीर के किसान एकत्रित लाग-बाग, बेगार तथा लगान की ऊंची दरों के खिलाफ आन्दोलन करने का निर्णय विजय सिंह पथिक जी द्वारा आन्दोलन का भार राम नारायण चौधरी को सुपुर्द किसानों द्वारा लाग-बाग, बेगार देना बंद सरकारी कार्यालय का बहिष्कार जागीरदारों का मेवाड़ सरकार के सहयोग से आन्दोलन का सामना करने का निर्णय किसानों द्वारा जमीन को पडत रखने का निश्चय बेगूं रावत द्वारा किसानों से समझौता मेवाड़ सरकार द्वारा इसे ‘बोल्शेविक’ समझौते की संज्ञा रावत अनूप सिंह नजरबन्द बेगूं पर मुन्सरमात ट्रेंच कमीशन कि नियुक्ति ट्रेंच द्वारा विजय सिंह पथिक पर समानांतर सरकार चलाने का आरोप सरकार का दमन चक्र
1923
13 जुलाई, 1923 को स्थिति पर विचार करने के लिए किसान गोविन्दपुरा में एकत्रित। सेना ने घेरा बंदी की। सेना की गोली से 2 किसान शहीद तथा अनेक किसान घायल। सेना द्वारा महिलाओं का अपमान। 500 से अधिक किसान गिरफ्तार। 10 सितम्बर को विजय सिंह पथिक गिरफ्तार । विजय सिंह पथिक को 5 वर्ष की सजा।

3.      मेवाड़ का भील आन्दोलन –

दिनांक
विवरण
1921
मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में मेवाड़, सिरोही, दांता, पालनपुर, ईदर तथा विजयनगर के आदिवासियों का संगठन गठित। नीमडा (विजयनगर) गाँव में लाग-बाग और बेगार के विरुद्ध आदिवासियों का संगठन बना दोनों सम्मेलन पर सेना द्वारा आक्रमण 1200 भील सेना की गोली से मारे गए तथा हजारों भील घायल हुए। मोतीलाल तेजावत बाल-बाल बचे, उनके पैर में गोली लगी। वे 8 साल तक भूमिगत रहे। गाँधी कि सलाह पर पुलिस में आत्मसमर्पण। उदयपुर में नजरबन्द।

4.      मेवाड़ का प्रजामंडल आन्दोलन-
दिनांक
विवरण
24 अप्रेल, 1938
24 अप्रेल को उदयपुर में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना श्री बलवंत सिंह मेहता अध्यक्ष तथा माणिक्यलाल वर्मा महामंत्री नियुक्त
1938
11 मई को मेवाड़ प्रजामंडल गैरकानूनी घोषित माणिक्यलाल वर्मा का मेवाड़ से निष्कासन माणिक्यलाल वर्मा द्वारा अजमेर में प्रजामंडल कार्यालय की स्थापना अक्टूबर 1938 को विजय दशमी के दिन प्रजामंडल द्वारा सत्याग्रह प्रारंभ लगभग 250 गिरफ्तारियां
1939
2 फ़रवरी को मेवाड़ पुलिस द्वारा अजमेर की सीमा पर माणिक्य लाल वर्मा की पिटाई तथा गिरफ़्तारी महात्मा गाँधी द्वारा मेवाड़ सरकार की कड़ी आलोचनामाणिक्य लाल वर्मा को देशद्रोह के आरोप में 2 वर्ष की सजा
1940
माणिक्य लाल वर्मा जेल में अस्वस्थ 8 जनवरी को रिहा गाँधीजी के आदेश पर सत्याग्रह स्थगित
1941
22 फ़रवरी को प्रजामंडल से पाबंदी हटी नवम्बर में माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में प्रजामंडल का प्रथम सम्मेलन आचार्य कृपलानी तथा श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित सम्मेलन में सम्मिलित इसमें उत्तरदायी शासन की मांग
1942
प्रजामंडल द्वारा उदयपुर के महाराणा को अंग्रेजों से सम्बन्ध विच्छेद करने हेतु अल्टीमेटम 21 अगस्त को माणिक्य लाल वर्मा उदयपुर में गिरफ्तार सम्पूर्ण नगर में हड़ताल कॉलेज तथा स्कूल बंद 600 विद्यार्थी गिरफ्तार हुए आन्दोलन का अन्य जिलों में विस्तार 500 कार्यकर्ता जेल में बंद
1943-44
अस्वस्थ होने के कारण माणिक्य लाल वर्मा जेल से रिहा श्री सी राजगोपालाचार्य (राजाजी) का उदयपुर आगमन राजाजी की माणिक्य लाल वर्मा से भारत छोड़ो आन्दोलन से अलग होने की सलाह माणिक्य लाल वर्मा का इससे इनकार प्रजामंडल के नेता व कार्यकर्ता रिहा
1945
31 दिसम्बर, 1945 तथा 1 जनवरी, 1946 को उदयपुर में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का पंडित जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में अधिवेशन शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला का ओजस्वी भाषण अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् द्वारा रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने की मांग
1947
महाराणा द्वारा श्री के. एम. मुंशी को संवैधानिक सलाहकार के पद पर नियुक्त किया मुंशी द्वारा मेवाड़ का संविधान तैयार
1947
23 मई प्रताप जयंती को मेवाड़ में संविधान लागू
1947
28 मई को मंत्रिमंडल में प्रजामंडल के 2 तथा क्षत्रिय परिषद् के 1 मंत्री शामिल जून में माणिक्य लाल वर्मा जन प्रतिनिधि के रूप में संविधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित महाराणा और श्री के. एम. मुंशी के बीच मतभेद मुंशी का इस्तीफा सर राममूर्ति प्रधानमंत्री नियुक्त अगस्त में जोधपुर के महाराणा द्वारा मेवाड़ के महाराणा से पाकिस्तान में शामिल होने का आग्रह मेवाड़ के महाराणा का इनकार मेवाड़ भारतीय संघ में शामिल अक्टूबर में मुन्शी-संविधान में परिवर्तन मेवाड़ विधान सभा के चुनावों की घोषणा
फ़रवरी 1948
विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया प्रारंभ प्रजामंडल के 8 उमीदवार निर्विरोध निर्वाचित
6 मार्च 1948
6 मार्च को सरकार और प्रजामंडल के बीच आन्तरिक मंत्रिमंडल के निर्माण पर समझौता सात सदस्यों के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित प्रजामंडल के 4 तथा क्षत्रिय परिषद् के 2 प्रतिनिधि व 1 निर्दलीय सरकार में लेने पर सर्वसम्मत निर्णय
23 मार्च, 1948
महाराणा द्वारा मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान में विलय करने की सहमती भारत सरकार को भेजी
4 अप्रेल, 1948
उदयपुर में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान एक मतदान केंद्र पर तिरंगे का अपमान। राजधानी में हड़ताल। प्रजामंडल द्वारा चुनाव का बहिष्कार।
5 अप्रेल, 1948
नगर में हड़ताल सरकार द्वारा चुनाव स्थगित पुलिस द्वारा भीड़ पर गोलीबारी 2 विद्यार्थी शहीद, कई लोग घायल।
11 अप्रेल, 1948
महाराणा द्वारा मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान में विलय करने की घोषणा तथा विलय पत्र पर हस्ताक्षर
18 अप्रेल, 1948
पं. नेहरु द्वारा उदयपुर में संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन मेवाड़ महाराणा को राज प्रमुख तथा माणिक्य लाल वर्मा को मुख्यमंत्री पद की शपथ मेवाड़ राज्य का अस्तित्व समाप्त
दिसम्बर 1948
जागीरदारी प्रथा का उन्मूलन
14 जनवरी, 1949
उदयपुर में सरदार पटेल द्वारा वृहद् राजस्थान के निर्माण की घोषणा
3० मार्च, 1949
जयपुर में वृहद् राजस्थान का उद्घाटन

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली