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Solar Pump Agricultural Connection Plan - सोलर पम्प कृषि कनेक्शन योजना

सोलर पम्प कृषि कनेक्शन योजना-Solar Pump Agricultural Connection Plan राजस्थान में दिसम्बर 2013 तक कृषि कनेक्शन हेतु लम्बित 3 व 5 एच.पी. के लगभग 70 हजार आवेदकों के कृषि पम्प सेटों को सौर ऊर्जा से ऊर्जीकृत करने एवं ग्रीन ऊर्जा को प्रोत्साहित करने हेतु सोलर पम्प कृषि कनेक्शन योजना आरम्भ की गई है। सोलर पम्प कृषि कनेक्शन योजना में सौर ऊर्जा पम्प कनेक्शन उन कृषि कनेक्शन आवेदकों को देय होगा जो विद्युत वितरण निगमों की सामान्य कृषि श्रेणी में 3 एच.पी. व 5 एच.पी. के लिए 1 मार्च 2010 से 31 दिसम्बर 2013 तक पंजीकृत है। प्रथम चरण में 10,000 सोलर पम्प स्थापित किये जायेंगे। योजना में पंजीकरण हेतु सामान्य कृषि कनेक्शन आवेदक विद्युत निगम के सम्बन्धित सहायक अभियन्ता (पवस) कार्यालय में रूपये 1000/- जमा कराकर आवेदन कर सकेगें। योजना में सरकार द्वारा 60 प्रतिशत राशि वहन की जावेगी एवं शेष 40 प्रतिशत राशि आवेदक द्वारा देय होगी। आवेदक की निगम में निर्धारित मूल वरीयता अनुसार ही सौर ऊर्जा पम्प सेट स्थापित किये जावेंगे। सौर ऊर्जा पम्प सेटों का 7 वर्ष तक निःशुल्क बीमा आपूर्तिकर्ता/निर्माता कंप

RAJASTHAN STATE GAS LIMITED - राजस्थान राज्य गैस लिमिटेड

RAJASTHAN STATE GAS LIMITED - राजस्थान राज्य गैस लिमिटेड खुदरा गैस के बुनियादी ढांचे को स्थापित करने तथा घरेलू, मोटर वाहन, वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों के लिए स्वछ्तर ईंधन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए राज्य में एक नोडल एजेंसी के रूप में 'गेल गैस लिमिटेड' (महारत्न कंपनी गेल (इंडिया) लिमिटेड की सहायक कंपनी) और 'राजस्थान राज्य पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड' (राजस्थान राज्य खान और खनिज लिमिटेड- आर.एस.एम.एम.एल. की एक सहायक कम्पनी) द्वारा 20 सितंबर 2013 को 'एक ''RSPCL-GAIL GAS LIMITED'' नामक संयुक्त उद्यम कंपनी' को स्थापित किया गया था। राजस्थान में खुदरा गैस के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए माननीय मुख्यमंत्री की उपस्थिति में 28/10/2014 को आरआईआईसीओ (राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम) के साथ उक्त संयुक्त उद्यम कंपनी द्वारा समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करने के बाद, यह कंपनी ''आरएसपीसीएल-गेल गैस लिमिटेड'' से ''राजस्थान राज्य गैस लिमिटेड (आरएसजीएल)'' में परिवर्तित हो गई। राजस्थान

Kathodi Tribe of Rajasthan - राजस्थान की कथौड़ी जनजाति

Kathodi Tribe of Rajasthan - राजस्थान की कथौड़ी जनजाति राज्य की कुल कथौड़ी आबादी की लगभग 52 प्रतिशत कथौड़ी लोग उदयपुर जिले की कोटडा, झाडोल, एव सराडा, पंचायत समिति में बसे हुए है। शेष मुख्यतः डूंगरपुर, बारां एवं झालावाड़ में बसे है। ये महाराष्ट्र के मूल निवासी है। खैर के पेड़ से कत्था बनाने में दक्ष होने के कारण वर्षो पूर्व उदयपुर के कत्था व्यवसायियों ने इन्हें यहाँ लाकर बसाया। कत्था तैयार करने में दक्ष होने के कारण ये कथौड़ी कहलाए गए। राजस्थान में 2011 की जनगणना के अनुसार कथौड़ी जनजाति की कुल आबादी मात्र 4833 है। ये Kathodi,  Katkari,   Dhor Kathodi,   Dhor Katkari,   Son Kathodi,   Son Katkari के अलग-अलग उपजातियों में पाए जाते हैं। वर्तमान में वृक्षों की अंधाधुध कटाई व पर्यावरण की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा इस कार्य को प्रति बंधित घोषित कर दिए जाने कथौड़ी लोगों की आर्थिक स्थिति बडी शोचनीय एवं बदतर हो गयी है। आज य जनजाति समुदाय जगंल से लघु वन उपज जैसे बांस, महुआ, शहद, सफेद मूसली, डोलमा, गोंद, कोयला एकत्र कर और चोरी-छुपे लकड़ियाँ काटकर बेचने तक सीमित हो गया है। राज्य की अन्य सभी जनजातियो

कैसे करें राजस्थान में खजूर की खेती - राज्य की सूक्ष्म एवं गर्म जलवायु में खजूर की खेती

खजूर शुष्क जलवायु में उगाया जाने वाला प्रचीनतम फलदार वृक्ष है। पाल्मेसी कुल के इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम फीनिक्स डेक्टीलीफेरा है। मानव सभ्यता के सबसे पुराने कृषि किए जाने वाले फलों में से यह एक फल है। इसकी उत्पत्ति फारस की खाड़ी मानी जाती है। दक्षिण इराक (मेसोपोटोमिया) में इसकी खेती ईसा से 4000 वर्ष पूर्व प्रचलित थी। मोहनजोदड़ों की खुदाई के अनुसार भारत-पाकिस्तान में भी ईसा से 2000 वर्ष पूर्व इसकी कृषि विद्यमान थी। पुरातन विश्व में खजूर की व्यवसायिक खेती पूर्व में सिन्धु घाटी से दक्षिण में तुर्की-परशियन-अफगान पहाड़ियों, इराक किरकुक-हाईफा तथा समुद्री तटीय सीमा के सहारे-सहारे टयूनिशिया तक बहुतायत में की जाती थी। इसकी व्यवसायिक खेती की शुरूआत सर्वप्रथम इराक में हुई। ईराक, सऊदी अरब, इरान, मिश्र, लिबिया, पाकिस्तान, मोरक्को, टयूनिशिया, सूडान, संयुक्त राज्य अमेरिका व स्पेन विश्व के मुख्य खजूर उत्पादक देश है। हमारे देश में सर्वप्रथम 1955 से 1962 के मध्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केन्द्र अबोहर द्वारा मध्यपूर्व के देशों संयुक्त राज्य अमेरिका व पाकिस्तान से खजूर की कुछ व्यवसायिक

Bovine animals in Rajasthan राजस्थान में गौ-वंश - (राजस्थान में पशुधन)

राजस्थान में गौ-वंश राजस्थान के पशुपालन के क्षेत्र में गाय का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। राजस्थान की अर्थव्यवस्था में गौधन का महत्वपूर्ण स्थान है।  भारत की समस्त गौ वंश का लगभग 8 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। गौ वंश संख्या में भारत में प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश का है। राजस्थान राज्य का भारत में गौ-वंश संख्या में सातवाँ स्थान है। राज्य में कुल पशु-सम्पदा में गौ-वंश प्रतिशत 22.8 % है। संख्या में बकरी के पश्चात् गौवंश का स्थान दूसरा है। राजस्थान में अधिकतम गौवंश उदयपुर जिले में हैं जबकि न्यूनतम धौलपुर में हैं। गौशाला विकास कार्यक्रम की राज्य में शीर्ष संस्था राजस्थान गौशाला पिजंरापोल संघ, जयपुर है। बस्सी (जयपुर) में गौवंश संवर्धन फार्म स्थापित किया गया है। राज्य गौ सेवा आयोग, जयपुर की स्थापना 23 मार्च 1951 को की गई थी। गौ-संवर्धन के लिए दौसा व कोड़मदेसर (बीकानेर) में गौ सदन स्थापित किए गए हैं। राज्य में पशुगणना 2012 के अनुसार कुल गौधन संख्या 1,33,24,462 या लगभग 133.2 लाख (13.32 मिलियन) है।  अन्तर पशुगणना अवधि (2007-2012) के दौरान गौधन की संख्या में 9.94% की वृद्धि