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राजस्थान के लोक नाट्य - "शेखावटी ख्याल"

शेखावटी ख्याल - इस लोक नाट्य शैली की प्रमुख विशेषताएँ- (i) अच्छा पद संचालन (ii) पूर्ण सम्प्रेषित होने वाली शैली, भाषा व मुद्रा में गीत गायन। शब्दों से अधिक स्वर महत्वपूर्ण छटा लिए हुए। (iii) वाद्यों की उचित संगत, जिनमें हारमोनियम, सारंगी, शहनाई, बाँसुरी, नगाड़ा तथा ढोलक प्रमुख हैं। इस शैली के मुख्य खिलाड़ी चिड़ावा के नानूराम थे। उनका स्वर्गवास 60 वर्ष से अधिक समय हो चुका है, लेकिन वे अपने पीछे स्वचरित ख्यालों की एक धरोहर छोड़ गए हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित है- (i) हीर रांझा (ii) राजा हरिश्चन्द्र (iii) भर्तृहरि (iv) जयदेव कलाली (v) ढोला मरवण (vi) आल्हादेव। नानूराम चिड़ावा निवासी मुसलमान थे। किन्तु सभी जाति व संप्रदाय के लोग उन्हें बड़े सम्मान के उनकी कला के लिए आज भी सभी याद करते हैं। उनके योग्यतम शिष्यों में एक दूलिया राणा थे जिनके परिवार के लोग आज भी इन ख्याल का अखाड़ा लगाते हैं तथा इनमें होने वाले व्यय को वहन करते हैं। दूलिया राणा स्री चरित्रों को बड़ी कुशलता से निभाते थे। दूलिया राणा की मृत्यु के बाद उनके पुत्र सोहन लाल व पोते बनारसी आज भी साल में आठ महीनों तक इन ख्यालो

राजस्थान के लोक नाट्य - " जयपुरी ख्याल"

जयपुरी ख्याल - अन्य ख्यालों से अलग जयपुरी ख्याल की कुछ अपनी विशेषताएँ है जो इस प्रकार है- (i) स्री पात्रों की भूमिका स्रियाँ निभाती हैं। (ii) यह शैली रुढ़ नहीं है बल्कि मुक्त तथा लचीली है। यह कलाकारों को नए प्रयोगों की पर्याप्त संभावनाएँ प्रदान करती है (iii) इसमें कविता, संगीत, नृत्य तथा गान व अभिनय का सुंदर समानुपातिक समावेश है। गुणवान कलाकार जयपुरी ख्यालों में हिस्सा लिया करते थे। इस शैली के कुछ लोकप्रिय ख्याल निम्नलिखित है - (१) जोगी-जोगन (२) कान-गूजरी (३) मियाँ-बीबू (४) पठान (५) रसीली तम्बोलन। सन् 1981 में "ख्याल भारमली" के कथ्य पर नई शैली में एक नाटक लिखा गया। इसके लेखक राजस्थान के प्रयोगवादी नाटककार श्री हमीदुल्ला हैं। यह नाटक राजस्थान के अलावा हैदराबाद, बैंगलोर, चैन्नई, मुम्बई, दिल्ली और लखनऊ आदि स्थानों पर भी खेला गया। इसके बहुरंगी लोक वातावरण के कारण इसे सभी स्थानों पर सराहा गया तथा कुछ प्रांतीय भाषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ।

राजस्थान के लोक नाट्य - "कुचामनी ख्याल"

कुचामनी ख्याल - इसका उद्गम नागौर जिले का कुचामन शहर है। लोक जीवन के विख्यात लोक नाट्यकार 'लच्छीराम' द्वारा इसका प्रवर्तन किया गया। उन्होंने प्रचलित ख्याल परम्परा में अपनी शैली का समावेश किया। इस शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित है- (i) इसका रूप गीत-नाट्य या ऑपेरा जैसा होता है। (ii) इसमें लोकगीतों की प्रधानता होती है। (iii) लय के अनुसार ही नृत्य में ताल होती है। आलापचारी की समाप्ति पर पात्र अपना कमाल दिखाते हैं। (iv) इसे खुले मंच (ओपन एयर) पर प्रस्तुत किया जाता है। मंच पर पर्दे का प्रयोग नहीं होता है। मंच के लिए तख्त का प्रयोग किया जाता है। (v) इसमें पुरुष ही स्त्री चरित्र का अभिनय करते हैं। (vi) इस ख्याल में संगत के लिए वादक ढोल, शहनाई आदि प्रयुक्त करते हैं। (vii) इसमें प्रायः नर्तक ही गाने गाते हैं लेकिन जब नर्तक की साँस उखड़ जाती है तो मंच पर बैठे अन्य सहयोगी गायक गायन जारी रखते हैं। गीत बहुत ऊँचे स्वर में गाये जाते हैं। (viii) इसमें सरल भाषा एवं सीधी बोधगम्य लोकप्रिय धुनों का प्रयोग होता है और अभिनय की कुछ सूक्ष्म भावभिव्यक्तियाँ होती है। (ix) इसमें सामाजिक स्थितियों

राजस्थान के 'ख्याल' लोकनाट्य

ख्याल : एक परिचय- ख्याल राजस्थान के लोक नाट्य की सबसे लोकप्रिय विद्या है। इसके 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही राजस्थान में लोक नाट्यों के नियमित रुप से सम्मिलित होने के प्रमाण मिलते हैं। ख्याल शब्द खेल शब्द का अपभ्रंश है। यहां खेल से तात्पर्य नाटक खेलने से है। ख्याल के अभिनेता को 'खिलाड़ी' कहते हैं। ख्यालों की विषय-वस्तु पौराणिक या किसी पुराख्यान या ऐतिहासिक पुरुषों के वीराख्यान या लोक देवता व लोक देवियों के कल्याणकारी गाथा से जुड़ी होती है। भौगोलिक अन्तर के कारण इन ख्यालों ने भी परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग रुप ग्रहण कर लिए। इन ख्यालों के खास प्रकार निम्नलिखित है - कुचामनी ख्याल शेखावटी ख्याल जयपुरी ख्याल तुर्रा - कलंगी ख्याल माँची ख्याल हाथरसी ख्याल। ये सभी ख्याल बोलियों में ही अलग नहीं है, बल्कि इनमें शैलीगत भिन्नता भी पाई जाती है। जहाँ कुछ ख्यालों में संगीत की महत्ता अधिक है तो दूसरों में नाटक, नृत्य और गीतों सभी की प्रधानता है। इनमें गीत प्राय: लोकगीतों पर आधारित है या शास्रीय संगीत पर। लोकगीतों एवं शास्रीय संगीत का भेद ख्याल को गाने वाले विशेष नाट्यकार पर ही आध

राजस्थान के लोक नाट्य

राजस्थान में लोक नाट्य जन जीवन को सदैव आह्लादित करते रहे हैं। गीतों व नृत्यों की प्रधानता लिए इन लोक नाट्य में दर्शकों एवं अभिनेता के बीच दूरी प्रायः नहीं होती है। अधिकतर इनमें वेशभूषा प्रतीकात्मक ही होती है। ये लोकनाट्य अधिकतर ऐतिहासिक व पौराणिक आख्यानों पर आधारित होते हैं लेकिन आजकल इनमें समसामयिक राजनीति और शासन व्यवस्था को भी अभिव्यक्त किया जाने लगा है। वैसे तो इनमें पुरुष व स्त्री दोनों ही भाग लेते हैं लेकिन कई बार पुरुष ही स्त्री की वेशभूषा में अभिनय करते हैं। इन लोक नाट्य में राजस्थान की लोक संस्कृति की झलक मिलती है किन्तु सीमावर्ती जिलों के लोक नाट्य में पड़ोसी राज्य की संस्कृति का प्रभाव भी देखा जाता है जैसे अलवर और भरतपुर के लोकनाट्य में हरियाणा व उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति के मिले जुले रूप के दर्शन होते हैं तो धौलपुर एवं सवाईमाधोपुर के लोकनाट्य में ब्रज संस्कृति देखी जा सकती है। वैसे तो इन लोक नाट्य में जाति विशेष की बाध्यता नहीं है लेकिन बहुतायत में कुछ विशेष जातियों जैसे नट, भाट, भाँड आदि जाति के लोगों की होती है। यहाँ जनजाति यथा- भील, गरासिया, मीणा, सहरिया, बंजारे आदि के

समसामयिक घटनाचक्र Current affairs 8.2.2011

52 जिलों में इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना भारत सरकार ने देश के दूरदराज इलाकों में जच्चा बच्चा की ठीक ढंग से देखभाल के लिये 1000 करोड़ रुपये की इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना चयनित 52 जिलों में चलाई है और इन जिलों में करीब 14 लाख गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को योजना का लाभ मिलेगा। चुने गये 52 जिलों के आंगनबाड़ी केन्द्रों के जरिये योजना पर अमल किया जायेगा। शतप्रतिशत केन्द्र प्रायोजित इस योजना पर अमल में एकीकत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के पूरे ढांचे को उपयोग में लाया जायेगा। इसके अलावा अनुबंध के आधार पर अन्य लोगों को भी इसमें लगाया जायेगा। योजना के तहत 19 वर्ष से अधिक उम्र में पहली बार माँ बनने वाली गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं को तीन किस्तों में कुल 4000 रुपये की नकद राशि अतिरिक्त सहायता के तौर पर उपलब्ध कराई जायेगी। इस योजना के 52 जिलों में राजस्थान के उदयपुर व भीलवाडा जिले शामिल है। केन्द्र व राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों को इस योजना से अलग रखा गया है। क्योंकि उन्हें मातृत्व लाभ के दौरान वेतन सहित अवकाश की सुविधा मिली हुई है। इस योजना

Forts of Rajasthan and Its Founders--राजस्थान के प्रमुख किले एवं उनके निर्माणकर्ता---Important Rajasthan GK

1. बयाना का किला या बिजयगढ़ या विजयगढ़- जादौन राजा बिजयसिंह 2. जोधपुर का किला या मेहरानगढ़ - राव जोधा [ 1459 में ] 3. अचलगढ़ का किला माउंट आबू- राणा कुंभा 4. भरतपुर का किला लोहागढ़ - जाट राजा सूरजमल [ 1733 में ] 5. कुंभलगढ़ का किला- राणा कुंभा 6. मांडलगढ़ का किला- चौहान शासक 7. नाहरगढ़ या सुदर्शनगढ़ [ जयपुर ] का किला- सवाई जयसिंह 8. जैसलमेर का किला या सोनार का किला- महारावल जैसलदेव 9. चित्तौड़गढ़ का किला- चित्रांगद मौर्य 10. सिवाना का किला जिला बाड़मेर- पँवार राजा वीर नारायण प्रथम 11. तारागढ़ का किला या गढ़बीठली या अजयमेरु दुर्ग अजमेर - अजयपाल सिंह चौहान 12. बीकानेर का किला या जूनागढ़- राजा रायसिंह राठौड़ 13. गागरोण का किला ( झालावाड़ ) - डोड राजा बीजलदेव [ 12 वीं सदी ] 14. डीग का किला- राजा सूरजमल 15. कोटा का किला- माधोसिंह 16. तारागढ़ बूँदी का किला- हाड़ा राजा बरसिंह [ 14 वीं सदी में ] 17. जयगढ़ का किला ( आमेर ) - राजा सवाई जयसिंह द्वितीय 18. अकबर का किला या मैग्जीन या दौलतखाना अजमेर- अकबर 19. आमेर का किला- कछवाहा राजा धोलाराय 20. ना