राजस्थान की लोक आस्था में मांडनो का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। त्योहारों, उत्सव और मांगलिक कार्यों में मांडणा प्रत्येक घर-आंगन की शोभा होता है। मांडणा कला का भारतीय संस्कृति में सदियों से विशिष्ठ स्थान है। दीपोत्सव के अवसर पर तो यह कला लोकप्रथा का स्वरूप धारण कर लेती है। इस उत्सव पर ग्रामीण अंचल में घरों की लिपाई, पुताई व रंगाई के साथ मांडने बनाना अनिवार्य समझा जाता है। राजस्थान में ग्रामीण अंचल के अलावा शहरी क्षेत्र में भी मांडणा अंकन के जीवंत दर्शन होते है किंतु कतिपय घरों में इनके अंकन का माध्यम बदल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांडना उकेरने में गेरु या हिरमिच एवं खडिया या चूने का प्रयोग किया जाता है। इसके निर्माण में गेरु या हिरमिच का प्रयोग पार्श्व (बैकग्राउंड) के रूप में किया जाता है जबकि इसमें विभिन्न आकृतियों व रेखाओं का अंकन खड़िया अथवा चूने से किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में मांडने चित्रण में गेरु व खडिया के स्थान पर ऑयल रंगों का अक्सर उपयोग होने लगा है। नगरों में सामान्यतः लाल ऑयल पेंट की जमीन पर विभिन्न रंगों से आकारों का अंकन किया जाता है। दीपावली पर प्रत्
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