Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Agriculture in Rajasthan

जानिए क्या होता है फोग

मरू क्षेत्र का मेवा  - फोग केलिगोनम या फोग की करीब 60 प्रजातियां झाडी या छोटे वृक्षों के रूप में उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी एशिया व दक्षिणी यूरोप में पाई जाती है। इनमें से केलिगोनम पोलिगोनाइडिस (Calligonum polygonoides Linn) जिसे स्थानीय भाषा में फोग, फोगाली, फोक तथा तूरनी आदि नामों से पुकारा जाता है। यह पोलिगोनेएसी कुल का सदस्य है। फोग सफेद व काली रंग की झाड़ी है, जिसमें शाखित शाखाएं होती है। यह अत्यंत शुष्क एवं ओंस दोनों परिस्थिति में जीवित रह सकता है। भारत में यह उत्तरी पंजाब व पश्चिमी राजस्थान में अधिक मिलता है। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान में बागोही पहाडियों मे आर्मीनिया व सीरिया में भी मिलता है। पश्चिमी राजस्थान में केलिगोनम पोलीगोनाइडिस सामान्यतः 80 मिमी से 500 मिमी वर्ष वाले तथा 32-40 डिग्री से. तापमान वाले इलाकों में मिलता है। यह रेतीले इलाकों, टिब्बों तथा चटटानी क्षेत्रों में भी उग सकता है।  इसमें पुष्पण प्रायः फरवरी के अंत से मार्च के मध्य तक होता है। फल सामान्यतः मार्च के अंत तक या अप्रैल मध्य तक परिपक्व हो जाते है। इसके एक पौधे से डेढ़ से 4 किलो तक बीज प्राप्त हो सकता है। इन्ह

International Horticulture Innovation and training centre (IHITC), इंटरनेशनल हॉर्टिकल्चर इन्नोवेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर (आईएचआईटीसी)

International Horticulture Innovation and training centre (IHITC) : राज्य सरकार ने वाणिज्यिक बागवानी को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक उच्च तकनीक बागवानी पहलुओं पर व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु पीटीसी + इंटरनेशनल; नीदरलैंड (प्रैक्टिकल ट्रेनिंग सेंटर, नीदरलैंड) के तकनीकी सहायता से अंतर्राष्ट्रीय बागवानी नवाचार और प्रशिक्षण केंद्र (IHITC) की स्थापना की है। IHITC लघु अवधि के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के स्पेक्ट्रम युक्त ऐसा सबसे उत्तम स्थल है, जो वाणिज्यिक बागवानी, कृषि उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, उन्नत बागवानी प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन के लिए मूल्य संवर्धन या प्रसंस्करण से संबंधित क्षेत्रों में कर्मियों के कौशल को उन्नत करने, वाणिज्यिक बागवानी फसलों के लिए और खुदरा विपणन के संबंध में बागवानी में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने हेतु प्रकृति में व्यावहारिक और अभिनव प्रशिक्षण प्रदान करता है।  केंद्र के पास कॉर्पोरेट खेती या कॉर्पोरेट टाई-अप से बागवानी श्रृंखला के विकास को प्रोत्साहित करने और उत्पादकों के साथ उत्पादन के निर्यात को सुविधाजनक बनाने का जनादेश है। यह बढ़ती उष्णकटिबंधीय औ

RAJHANS - Rajasthan Horticulture And Nursery Society

राजस्थान हॉर्टिकल्चर एवं नर्सरी सोसायटी (राजहंस)- राजस्थान में पारंपरिक कृषि अब व्यावसायिक कृषि में परिवर्तित हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, राज्य में बेर, संतरा, किन्नो, आंवला आदि फलों, जीरा, मेथी, धनिया आदि मसालों, सब्जियों, फूलों एवं कई औषधीय पादप फसलों ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। आजकल किसानों का ध्यान कम पानी में कम जोखिम वाली अधिक लाभदायक फसलों को लेने की ओर आकृष्ट हुआ है।  राज्य में उद्यानिकी विकास की विपुल सम्भावनाओं को देखते हुए विभिन्न कार्यक्रम उद्यान विभाग द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। राज्य में उद्यान विभाग 1989-90 में स्थापित किया गया ताकि उद्यानिकी गतिविधियों को गति मिल सके। राज्य के किसानों को गुणवत्तापूर्ण पौधरोपण सामग्री उपलब्ध कराना उद्यान विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती था। RAJHANS की स्थापना से पहले, सीमित बजट आवंटन और लेखांकन नियमों की सीमाओं के कारण राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले पौधरोपण सामग्री के उत्पादन में कठिनाई थी। सरकारी नर्सरियों के पास पर्याप्त बजट न होने तथा और पौधों को तैयार करने में अधिक समय लगने के कारण अच्छी गुणवत्ता की रोपण साम

How to cultivate guar कैसे करें ग्वार की खेती

कैसे करें ग्वार की खेती - How to cultivate guar दलहनी फसलों में ग्वार का भी विशेष योगदान है। ग्वार की फसल प्रमुख रूप से पशु चारे की फसल के रूप में उगाई जाती है, किन्तु इसे गोंद के लिये पैदा करना ज्यादा लाभदायक है, क्योंकि इसका औद्योगिक महत्व है। यह फसल राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में ली जाती हैं। भारत में ग्वार की फसल के का क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान राज्य अग्रणी है। ग्वार के गोंद का विदेशों में निर्यात किया जाता है। इसके दाने मे 18% प्रोटीन, 32% रेशा तथा दाने के इन्डोस्पर्म में लगभग 30-33% गोंद पाया जाता है। ग्वार की फसल के लिए आवश्यक जलवायु - ग्वार एक उष्ण कटिबन्धीय पौधा है। इसको गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। अच्छे अंकुरण के लिये इसकी बुवाई के समय 30-35 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम होना चाहिए जबकि 32-38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर इसकी वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है किन्तु फूल वाली अवस्था में अधिक तापक्रम के कारण फूल गिर जाते है। यह 45-46 सेन्टीग्रेड तापक्रम को सहन कर सकती है। वातावरणीय आर्द्रता कई बीमारी जैसे जीवाणु पत्

राजस्थान मत्स्य पालन प्रश्नोत्तरी

राजस्थान मत्स्य पालन प्रश्नोत्तरी- S. No. Question / प्रश्‍न Answer / उत्‍तर 1  मछली बीज उत्पादन का समय?  मानसून आने पर जून जुलाई माह में।  2  मछली बीज उत्पादन की विधि?  प्रेरित प्रजनन विधि।  3  हैचरी में कैसे उत्पादन होता है?   नर व मादा मछली को हारमोन्स का इन्जेक्शन देकर पानी का प्रवाह कर प्रजनन करवाया जाता है।  4  मछली बीज पालने हेतु किस अवस्था का संचय करना चाहिये?  1. बड़े तालाबों में आंगुलिक अवस्था। 2. मध्यम व छोटे तालाब में फ्राई अवस्था। 3. स्वयं के तालाब एवं ग्रामीण पोखरों में फ्राई अवस्था।  5  मछली बीज संचय की दर क्या होनी चाहिये?  1. बड़े तालाबों में 500 आंगुलिक प्रतिहेक्टर। 2. मध्यम व छोटे तालाब में 5000 प्रति हेक्टर फ्राई। 3. स्वयं के तालाब एवं ग्रामीण पोखरों में 20 से 25 हजार स्पान प्रति हैक्टर।  6  यदि छोटा बीज प्राप्त कर उसे पाला जाये तो कितने दिनों में बड़ा होगा?   20-30 दिनों में यह बड़ा हो जायेगा, जो पालने योग्य उत्तम सार्इज है।  7  बीज को पालने में क्या भोजन देना चाहिये?  बच्चे के विकास हेतु सरसों की खल व चावल की भूसी, एग्रीमिन कृत्रिम भोजन के रूप म

Centre of Excellence for Horticultural Crops in Rajasthan

राजस्थान में उद्यानिकी फसलों के लिए उत्कृष्टता केंद्र- Centre of Excellence for Horticultural Crops in Rajasthan: किसानों और विस्तार श्रमिकों के लिए आधुनिक गहन फसल प्रौद्योगिकी, फसल प्रबंधन तरीकों और मानव संसाधन विकास सुविधाओं के प्रदर्शन के लिए राजस्थान की राज्य सरकार ने छह अलग-अलग "उत्कृष्टता केंद्र ( Centre  of Excellence) " स्थापित किए हैं। इन केंद्रों का उद्देश्य ज्ञान, प्रौद्योगिकी के पारस्परिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना और किसानों का उपयुक्त प्रौद्योगिकी के साथ मार्गदर्शन करना है।  राज्य में फसल विविधिकरण द्वारा कृषकों को अधिक उत्पादन, प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक लाभ, अधिक रोज़गार सृजन एवं टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने हेतु फसल विशेष के सेन्टर ऑफ़ एक्सीलेन्स (उत्कृष्टता केन्द्रों) की स्थापना की गई है। इन केंद्रों पर चिह्नित फसल विशेष से जुड़े समस्त उन्नत तकनीक का प्रदर्शन किया जाकर कृषकों को जानकारी दी जाती है। इस हेतु राज्य में 9 उत्कृष्टता केन्द्र स्थापित किये गये हैं। उत्कृष्टता केन्द्र द्वारा फसल विशेष से जुड़ी आधुनिक तकनीक के साथ उपयुक्त किस्मों गुणवत्ता पूर्ण पौधर