Skip to main content

जयपुर में 14 से 17 मार्च तक आयोजित होगा रसोई उत्सव, 2019

जयपुर में 14 से 17 मार्च तक आयोजित होगा रसोई उत्सव, 2019 


जयपुर, 9 मार्च। उद्योग विभाग द्वारा राजस्थान हाट पर 14 से 17 मार्च तक आयोजित ‘‘रसोई-2019  स्वाद राजस्थान का’’ उत्सव में राजस्थान के परंपरागत खान-पान की हाइजिनिक, पुष्टिकर्ता, सुपाच्यता और स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भी रुबरु कराया जाएगा।

उद्योग आयुक्त डॉ. पाठक ने बताया कि उत्सव के दौरान जयपुर राइट्स प्रमुख व्यंजनों-मसालों के उद्भव, उनकी गुणवत्ता और विकास यात्रा की जानकारी भी प्राप्त कर सकेंगे। रसोई उत्सव जयपुर के नागरिकों की रसोई को स्वास्थ्यवर्धक और अधिक पुष्ट बनाने की दिशा में बढ़ता कदम होगा।

उद्योग आयुक्त डॉ. पाठक शनिवार को उद्योग भवन में राजस्थान खाद्य व्यापार संघ सहित विभिन्न औद्योगिक संघों, उच्च शिक्षण संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ रसोई 2019 को जयपुरवासियों के लिए और अधिक उपादेय व बहुआयामी बनाने के संबंध में चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजस्थान के व्यंजनों व मसालों को वैश्विक पटल पर उतारने और जयपुरवासियों को शुद्ध मसालें और प्रदेश के कोने कोने के व्यंजन उपलब्ध कराने के लिए रसोई 2019 का आयोजन किया जा रहा है। 

डॉ. पाठक ने कहा कि आज खान-पान की आदतें बदलने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है वहीं मिलावटी व विज्ञापनीय चकाचोंध के चलते गैरहाइजनिक खाद्य पदार्थों के चलते नई नई बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शुद्ध और गुणवत्तायुक्त खान पान से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव को भी रोका जा सकता है। 

राजस्थान खाद्य व्यापार संघ के अध्यक्ष श्री बाबू लाल गुप्ता ने इस पहल की सराहना करते हुए अधिक से अधिक सहभागिता पर जोर दिया। श्री गुप्ता ने कहा कि राजस्थानी खान-पान हमारे बुजुर्गों के अनुभव और प्रयोग का परिणाम है जिससे उसमें स्वास्थ्य के सारे गुण समाहित है। उन्होंने कहा कि खान-पान में बदलाव के कारण ही आज पेट की बीमारियों से जयपुर के 70 प्रतिशत तक लोग ग्रसित है।

नेशनल ऑयल एण्ड ट्रेड फैडरेशन के अध्यक्ष मनोज मोरारका ने कहा कि आज हम पीली सरसों और इसके तेल के गुणों को भूलते जा रहे हैं। रसोई उत्सव में खाद्यतेलों की गुणवत्ता और उपयोगिता की जानकारी भी दी जाएगी। 

जाने माने सेफ समीर गुप्ता ने बताया कि राजस्थान के 150 से अधिक व्यंजन है जिनमें से अधिकांश को भुला दिया गया है। उन्होंने बताया कि चारों दिन दो-दो घंटे का कूकिंग सेशन रखकर रसोई उत्सव में वे स्वयं हिस्सा लेकर लुप्त प्रायः व्यंजनों के प्रिपरेशन की जानकारी देंगे। 

होगी व्यंजन प्रतियोगिता भी-


महिला आईटीआई की चेयरपर्सन अनिता गुप्ता ने सुझाव पर रसोई उत्सव के दौरान प्रतिदिन चार-चार कूकरी (पाक कला) प्रतियोगिताओं का भी आयोजन करना तय किया गया है। इसमें 14 को राजस्थानी ट्रेडिशनल व्यंजन, केक विदाउट एग, 15 को वैरायटीज ऑफ खीर, वैरायटीज ऑफ खिचड़ी, 16 को राजस्थानी दाल बाटी चूरमा, वेजिटेबल व फ्रूट सलाद और 17 मार्च को बच्चों का नो नाइफ नो फ्लेम फूड और शैक्स की प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। प्रतियोगिता में प्रतिभागिता के लिए उपनिदेशक निधि शर्मा से संपर्क किया जा सकता है।

उम्मीद है आपको ये लेख पसंद आया होगा, कैसा लगा आप जरुर नीचे comment करके बताइएगा। अगर कोई सुझाव देना चाहते हो तो जरुर दीजिये जिससे हम आपके लिए कुछ नया कर सके। हमारे Blog को अभी तक अगर आप Subscribe नहीं किया है तो जरुर Subscribe करें। 
जय हिंद, जय भारत, धन्यवाद।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली